एनएचएआई परियोजना निदेशक एसके मिश्रा की अगुवाई में मिली सफलता
बिहार के सासाराम के मूल निवासी हैं इंजीनियर एसके मिश्रा
नई दिल्ली/ सासाराम (Voice4bihar news)। एक कहावत है- “आम के आम, गुठलियों के दाम।” अगर किसी वस्तु का उपयोग करने के बाद उससे बचे अवशेष का इस्तेमाल करने की तरकीब मिल जाए तो यह किसी आविष्कार से कम नहीं। ऐसा ही कारनामा एक रिसर्च टीम ने कर दिखाया है, जो गन्ना से चीनी उत्पादन के दौरान निकलने वाले अवशेष का इस्तेमाल सड़क निर्माण के लिए करने के फार्मूले के रूप में सामने आया है। इसका श्रेय जाता है बिहार के सासाराम निवासी एवं नेशनल हाईवे ऑथरिटी ऑफ इंडिया में बतौर परियोजना निदेशक कार्यरत एसके मिश्रा व आईआईटी रुड़की की रिसर्च टीम को।
दरअसल, समय व समाज की जरुरत को लेकर एक विस्तृत फलक पर अनवरत सोच या मंथन नये अविष्कार को जन्म देता है। इस नए आविष्कार की पृष्ठभूमि ऐसे ही एक क्षेत्र में तैयार हुई, जहां निरंतर प्रयासों के बाद एक कारगर फार्मूला सामने आया। भौगोलिक रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश गन्ना व चीनी उत्पादन में देश में विशेष स्थान रखता है। यहां लगातार इस विषय में अन्वेषण किया जाता रहा है कि गन्ना से उत्पादित चीनी व उसके वाई-प्रोडक्ट का नया उपयोग किस प्रकार किया जाय ताकि क्षेत्र व समाज की समृद्धि निरंतर जारी रहे। परिणामस्वरुप, शीरे (मोलायसिस) को सड़क तार (तारकोल) बिटुमिन में मिलाकर सड़क निर्माण का सफल परीक्षण किया गया।
तारकोल में मिलाया जा रहा 25 प्रतिशत मोलायसिस
मूलतः बिहार के सासाराम निवासी एनएचएआई बागपत के परियोजना निदेशक के पद पर कार्यरत एसके मिश्रा ने इस महती रिसर्च प्रोजेक्ट को लेकर बताया कि कई स्तरों पर शोध के बाद गन्ने से चीनी निर्माण के दौरान तैयार वाई-प्रोडक्ट शीरे (मोलायसिस) का 25 फीसदी मात्रा तारकोल बिटुमिन में मिलाकर साढ़े छह सौ मीटर लम्बी सड़क का निर्माण किया गया। निरन्तर विश्लेषण व निगरानी के बाद प्राप्त आंकड़े बेहद सफल रहे हैं।
गन्ना उद्योग के शीरे से मजबूत बनेगी सड़क
शीरे व तारकोल के मिश्रण से निर्मित बिटुमिन मजबूत पकड़ व स्थायी सड़क सन्तुलन को बनाये रखने में भी मददगार है। यह मिश्रण तारकोल बिटुमिन कंक्रीट की तरह सड़क पर एकत्रित हो जाने की समस्या से भी निजात दिलाता है। साथ ही, इससे सड़क निर्माण में करीब 12 फीसद की लागत में कमी भी आएगी।
इस फार्मूले का पेटेंट कराया जाएगा : एसके मिश्रा
एनएचएआई बागपत के परियोजना निदेशक एसके मिश्रा ने बताया, रिसर्च के प्राप्त विश्लेषण को भारतीय सड़क कांग्रेस व भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को भी भेजा जा रहा है और हमारी कोशिश है कि इस फार्मूले (शोध परिणाम) का पेटेंट भी कराया जाय। इसके साथ ही, उन्होंने इस रिसर्च टीम में शामिल आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर निखिल साबू, जीआर इंफ़्रा प्रोजेक्ट रिसर्च हेड अतासी दास, क्वालिटी कंट्रोल हेड रणजीत कुमार, प्रोजेक्ट मैनेजर गिरिजेश त्रिपाठी को बधाई दी।