रोहतास में नक्सलवाद का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई डीएफओ संजय सिंह की हत्या

वनकर्मियों के बीच बढ़ती लोकप्रियता के साथ ही नक्सलियों की हिट लिस्ट में आ गए थे संजय

डीएफओ हत्याकांड में गवाहों ने किया खुलासा, कहा- ईमानदार और नेकदिल इंसान थे संजय सिंह

रोहतास से अभिषेक कुमार के साथ बजरंगी कुमार सुमन की रिपोर्ट

Voice4bihar news. शाहाबाद वन प्रमंडल के तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह की हत्या भले ही दो दशक पहले हुई थी, लेकिन जंगल पर वर्चस्व के लिए नक्सलियों व वन प्रशासन के बीच संघर्ष का यह टर्निंग प्वाइंट रहा। इस संघर्ष में डीएफओ संजय सिंह समेत कई वन कर्मियों ने अपनी जान देकर भी प्राकृतिक संपदा की रक्षा का प्रयास किया। 04 दिसम्बर 2000 को सीपी खंडूजा के तबादले के बाद शाहाबाद वन प्रमंडल के डीएफओ का पदभार ग्रहण करने वाले डीएफओ संजय सिंह की हत्या 14 माह बाद ही हो गयी।

कैमूर पहाड़ी के नौहट्टा थाना क्षेत्र अंतर्गत रेहल गांव के समीप दो दर्जन से अधिक सशस्त्र नक्सलियों ने 15 फरवरी 2002 को गोली मार हत्या कर दी थी। उस वक्त डीएफओ संजय सिंह अपने सहयोगी वनपाल पीएन सिंह, वनरक्षी रामजीवन पंडित, राम प्रवेश चौधरी, शिवमूरत पांडे, अंगरक्षक उमेश प्रसाद सिंह और ड्राइवर महबूब आलम के साथ जंगल में सड़क निर्माण का जायजा लेने पहुंचे थे। रोहतास रेंज में तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह 14 फरवरी की दोपहर में ही पहुंच चुके थे। परछा इलाके का निरीक्षण कर रोहतास फॉरेस्ट गेस्ट हाउस में रात्रि विश्राम किया था।

15 फरवरी को सुबह 9:30 बजे रोहतास फारेस्ट गेस्ट हाउस से कौडियारी जंगल होते हुए रेहल के इलाके में सड़क निर्माण का जायजा लेने निकले, तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह को शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि जिस रास्ते वे वन विभाग की टीम को लेकर जंगल में जा रहे हैं, वहां उनका सामना हार्डकोर सशस्त्र नक्सली दस्ते से हो जाएगा।

रेंज ऑफिसर ने दी वापस लौटने की सलाह, डीएफओ ने कहा- अभी आगे चलेंगे

जंगल में नक्सलियों की उपस्थिति से अनभिज्ञ तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह सफेद रंग की जिप्सी संख्या बीआर 24ए 8083 की अगली सीट पर बैठे तारडीह नाका से होते हुए मोरम वाली धनसा सड़क का निरीक्षण करते पूरी टीम के साथ रोहतास-रेहल रेंज की सीमा तक पहुंचे जहाँ रेंज आफिसर कुमार नरेन्द्र ने आगे रेहल रेंज की सीमा प्रारंभ होने की बात कहते हुए वापस चलने की सलाह दी थी। इसका खुलासा वनरक्षी रामजीवन पंडित ने अपने बयान में किया है। वापस होने की बजाए डीएफओ संजय सिंह ने चालक महबूब आलम को और आगे चलने का निर्देश देते हुए टीम से रेहल चलने की इच्छा व्यक्त की थी।

डीएफओ की प्राणरक्षा के लिए गिड़गिड़ाते रहे वनवासी

रेहल के वन विभाग वाले गेस्ट हाउस पहुंच डीएफओ ने ताला बंद देख रेहल फॉरेस्ट रेंज ऑफिस पहुंचने का निर्देश दिया, जहां वन विभाग की टीम को नक्सलियों ने बंधक बनाया और पौने एक घंटे की बहस के बाद डीएफओ संजय सिंह के हाथ को पीछे की तरफ गमछे से बांध दिया। इसके बाद लाठी और हथियार के कूंदे से पिटायी की। सैकड़ों वनवासियों ने नक्सली कमांडर के पैरों में गिरकर रोया-गिड़गिड़ाया, इसके बावजूद नक्सलियों ने गोली मार तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह की हत्या कर डाली।

अवैध खनन, तेन्दू पत्ता और लकड़ी की कटाई रुकने से बौखलाए थे नक्सली

अवैध खनन, तेन्दू पत्ते की निकासी सहित लकड़ी की कटाई पर शिकंजा कसते हुए तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह वनवासियों के भरोसेमंद बनते जा रहे थे। दूसरी ओर डीएफओ संजय सिंह नक्सलियों की हिट लिस्ट में भी आ गये थे। यह सूचना संजय सिंह की हत्या के एक सप्ताह पहले ही डीजीपी के पत्र से डीएफओ को मिली थी। हालांकि नक्सलियों ने अब तक डीएफओ की हत्या के लिए कोई खास योजना नहीं बनाई थी। दुर्योग वश नक्सली दस्ते से उनका सामना हो गया था और जान चली गयी।

जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि नक्सली अपने ही संगठन के एक सदस्य के पलामू निवासी विधवा मंगेतर की अन्यत्र शादी से नाराज थे और धमकाने के बावजूद रेहल के एक विधुर ब्यक्ति से शादी तय कर दी थी। 15 फरवरी को बारात वापसी के दौरान उस दुल्हन की डोली लूटने की मंशा से नक्सली जत्था जुटा था, इसी बीच नक्सलियों की टीम से वन विभाग के अधिकारियों की टीम की भेंट हो गयी और नक्सलियों ने तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह की गोली मार हत्या कर दी।

डीएफओ की हत्या के साथ ही रोहतास में सिमटने लगा नक्सलवाद

तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह की हत्या के बाद कैमूर के जंगलों में नक्सलियों के जो दिन लदने शुरू हुए तो आज तक जारी है। अब स्थिति यह है कि इस बार हुए पंचायत चुनाव में पहाड़ी के ऊपर बूथ होने के बावजूद निर्जला ज्यूतिया पर्व के दिन पहाड़ी के लगभग सभी बूथों पर 62 से 67 फीसदी वोटिंग हुआ। यह वही इलाका है जहां नक्सलियों के एक इशारे पर वोट बहिष्कार के पोस्टर बैनर पहाड़ी के नीचे तक थानों और प्रखंड मुख्यालय के आसपास चिपके दिखते थे।

डीएफओ संजय सिंह पर पुस्तक लिख रहे पंकज प्रताप मौर्य

कैमूरांचल की वादियों में धधकते नक्सलवाद से विकास तक के सफ़रनामे की चर्चा में तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह की कार्य शैली और क़ुर्बानी को दरकिनार नहीं किया जा सकता। पूरे मामले पर सासाराम नगर थाना क्षेत्र लखनुसराय मुहल्ला निवासी पंकज प्रताप मौर्य पुस्तक लेखन का कार्य कर रहे हैं। बहरहाल देखना दिलचस्प होगा कि मौर्य की लेखनी क्या रंग लाती है।

इनसाइड स्टोरी  : विवाहिता की डोली लूटने आए नक्सली दस्ते ने की थी डीएफओ की हत्या

रोहतास के पूर्व पुलिस अधीक्षक मनु महाराज के समक्ष सरेंडर करने वाले नक्सलियों से प्राप्त असलहे।

वर्ष 2000 के बाद चरम पर पहुंचा था नक्सलियों का खौफ

वर्ष 2000 में रेंज ऑफिसर वीर बहादुर राम की गोली मार हत्या उस वक्त हुई थी, जब नक्सलवाद चरम पर पहुंचा था। रेंज ऑफिसर की लाश के टुकड़े टुकड़े कर रोहतास रेंज ऑफिस के करीब कामदह नदी के पास फेंके जाने की घटना से खौफजदा वन कर्मियों एवं अधिकारियों का भय समाप्त हुआ नहीं था। रेंजर की हत्या के करीब एक माह बाद ही शाहाबाद के नये डीएफओ के तौर पर संजय सिंह ने पदभार संभाला, लेकिन महज एक साल बीतते ही नक्सलियों ने डीएफओ संजय सिंह की हत्या कर दी।

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एकजुट होकर नक्सलियों से मुकाबले की सलाह देते थे तत्कालीन डीएफओ

डीएफओ संजय सिंह की हत्या के लगभग 20 दिन पूर्व ही रोहतास बीट एरिया के वनरक्षी गणेश पांडे की नक्सलियों ने पिटाई की थी। इन घटनाओं के बीच तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह ने सामूहिकता को ताकत बनाने की बात कही थी। वे एकजुट होकर नक्सलियों से मुकाबला करने और वन संपदा सहित वन कर्मियों की सुरक्षा करने की सलाह दिया करते थे। इससे वनकर्मियों और वनवासियों में बेहतरी की उम्मीद जगी थी। जंगल से तेंदूपत्ता की तस्करी, पेड़ों की कटाई व अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए ड्यूटी पर मुस्तैद खड़े रहने व वर्दी पहने का निर्देश भी डीएफओ दिया करते थे।

वनवासियों के बीच काफी लोकप्रिय हो रहे थे डीएफओ संजय सिंह

तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह बेहद ही ईमानदार निर्भीक और नेक दिल इंसान थे। इसका खुलासा तत्कालीन डीएफओ के अंगरक्षक उमेश प्रसाद सिंह सहित वन विभाग के सभी अधिकारियों ने किया है। उनकी नेकदिली का खुलासा करते हुए नौहट्टा के रेहल गांव निवासी शिवानंद यादव के पुत्र गनौरी यादव ने जांच अधिकारियों के समक्ष बताया है कि रेहल से अधौरा और गोरेया से धनसा तक सड़क निर्माण में डीएफओ ने ग्रामीणों को रोजगार दिलाया था और सभी मजदूरों का समय से भुगतान कराया था।

रोजगार दिलाने के साथ ही बढ़ा दी थी मजदूरी

वनवासियों के लिए घरेलू जलावन की लकड़ियां लाने की छूट थी। डीएफओ की कार्यशैली से वनवासियों में कोई नाराजगी नहीं होने की बात भी गनौरी यादव ने कही है। इसके अलावे रेहल पोस्ट आफिस के डाकिया सीता राम के मुताबिक डीएफओ ने वन विभाग के विकास कार्य में कार्यरत मजदूरों की मजदूरी बढ़ा दी गयी थी और हमेशा छोटी बड़ी विकास योजनाएं संचालित रहने के कारण वनवासियों को लगातार रोजगार मिल रहा था।

डीएफओ कहते थे- जिसे मरना होगा, वह मरेगा ही…

वनवासी डीएफओ से काफी खुश रहने के साथ-साथ उनका आदर सम्मान भी किया करते थे। वनवासियों के बीच तत्कालीन डीएफओ का लगातार भरोसा बढ़ रहा था। बॉडीगार्ड उमेश प्रसाद सिंह के मुताबिक रात में भी अवैध कार्य की सूचना मिलने पर तत्कालीन डीएफओ निकल पड़ते थे। बॉडीगार्ड के मना किए जाने के बावजूद क्षेत्र में निकल जाने का खुलासा भी उमेश ने किया है। बकौल उमेश- डीएफओ अक्सर कहा करते थे कि जिसे मरना होगा, वह मरेगा। उसे कोई रोक नहीं रोक सकेगा।

वनवासियों में बढ़ती लोकप्रियता के साथ ही नक्सलियों की हिट लिस्ट में थे डीएफओ

जंगल में पेड़ों की कटाई तेंदूपत्ता की तस्करी अवैध खनन पर पूरी तरह से रोक लगाए जाने के कारण इन कार्यों में संलिप्त माफियाओं की बेचैनी बढ़ी हुई थी। माफियाओं ने कई बार तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह पर पथराव भी किया था, जिसमें उन्हें चोटें भी आई थी। इसका खुलासा वन अधिकारियों सहित बॉडीगार्ड द्वारा जांच रिपोर्ट में किया गया है। वनरक्षी रामप्रवेश चौधरी के मुताबिक बंजारी सीमेंट फैक्ट्री में अवैध रूप से खनन किया हुआ पत्थर लाया जाता था, जिससे फैक्ट्री में सीमेंट बनाई जाती थी। उस पर भी तत्कालीन डीएफओ ने पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया था।

वनरक्षी के मुताबिक अवैध खनन में लिप्त लोगों ने जिला मुख्यालय पर तत्कालीन डीएफओ के विरुद्ध धरना देते हुए के तबादले की मांग भी की थी। अंगरक्षक उमेश प्रसाद सिंह के मुताबिक तत्कालीन डीएफओ कहीं भी जाने से पहले अपनी मंजिल का खुलासा चालक या किसी अन्य पदाधिकारी से नहीं करते थे। गाड़ी में बैठने के बाद ही लोग जान पाते थे कि आज उनकी मंजिल क्या है।

हालांकि घटना के एक दिन पहले 14 फरवरी की दोपहर 12:30 बजे ही रोहतास के एक पीसीओ के माध्यम से तत्कालीन डीएफओ के शाम तक रोहतास पहुंचने की सूचना मिल चुकी थी। यह सूचना गेस्ट हाऊस की सफाई और हल्के नाश्ते के प्रबंध हेतू सासाराम से एक वन अधिकारी के द्वारा ही दी गयी थी। हत्या के सप्ताह पूर्व तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह ने स्वयं कार्यालय में कई लोगों के समक्ष स्वयं के नक्सलियों की हिटलिस्ट में होने की बात कहते हुए डीजीपी का पत्र प्राप्त होने का खुलासा किया था।

वर्ष 2011 में आठ साथियों के साथ आत्मसमर्पण करने वाला नक्सली अनिल कुशवाहा उर्फ रितेश उर्फ संदेश।

डीएफओ संजय सिंह की हत्या के बाद उखड़ने लगे नक्सलियों के पांव

15 फरवरी 2002 को तत्कालीन डीएफओ रहे संजय सिंह की हत्या के बाद हत्याकांड का मामला सरकार ने सीबीआई को सौंप दिया। जिसके बाद नीतीश उर्फ बीरबल यादव प्रियंका उर्फ विनीता कुमारी और राम बचन यादव की गिरफ्तारी 2005 में हुई वर्ष 2006 में कमांडर निराला यादव की गिरफ्तारी हुई इसी क्रम में कामेश्वर बैठा, शंकर राम उर्फ रौशन जैसे शीर्ष नक्सली भी दबोचे गये।

जुलाई 2011 में हार्डकोर नक्सली कमांडर वीरेन्द्र राणा और बिशुनदेव के नक्सल वार में मारे जाने के बाद इलाके में नक्सलवाद की जड़ें खोखली हुई, जिसमें पुलिस कप्तान के रूप में बच्चू सिंह मीणा, नैय्यर हसनैन खान, विकास वैभव, जितेन्द्र सिंह गंगवार, मनु महाराज जैसे सुपर कॉप आईपीएस की भूमिका अहम रही है।

नक्सलवार में मारा गया वीरेन्द्र उर्फ राणा, इसी ने डीएफओ को मारी थी गोली

डीएफओ संजय सिंह हत्याकांड के मुख्य आरोपी रहे कमांडर निराला यादव की गिरफ्तारी के बाद वीरेन्द्र यादव उर्फ राणा कथित तौर पर कमांडर की भूमिका में सक्रिय था। मुन्ना विश्वकर्मा और संदेश भी अहम भूमिका में थे। संगठन में भूमिका को लेकर सुलगे आंतरिक कलह में हुए नक्सलवार के कारण 01 जुलाई 2011 को वीरेन्द्र यादव उर्फ राणा की हत्या हो गयी।

इसके बाद रोहतास पुलिस को बड़ी सफलता मिली जब निर्मल उरांव उर्फ रामजी, मेघनाथ पासवान, निर्मल खरवार उर्फ अवधेश, नखरू खरवार उर्फ रामेश्वर, श्रीनिवास उर्फ संजीव, प्रमोद तिवारी उर्फ नखरू, राजेन्द्र सिंह खरवार, छोटेलाल चेरो सहित आठ साथियों के साथ अनिल कुशवाहा उर्फ रितेश उर्फ संदेश ने एक एके_56 सहित कई राइफल और भारी मात्रा में कारतूस के साथ आत्मसमर्पण किया।

हत्याकांड में कई नक्सलियों को हो चुकी है सजा, कई अब भी फरार

बहरहाल इस कांड में सजा सुनाई जा चुकी है। कमांडर निराला यादव उर्फ दीपक ऊर्फ रामराज यादव, राम बचन यादव, नीतीश उर्फ बीरबल, सुदामा उरांव ऊर्फ इनरजीत, ललन सिंह खरवार सहित कई हार्डकोर नक्सलियों को डीएफओ हत्यकांड में गिरफ्तारी के बाद अलग-अलग सजा सुनायी जा चुकी है । जब कि कई हार्डकोर आज भी पुलिस गिरफ्त से दूर हैं।

Naxalites had killed DFO Sanjay SinghThe turning point was the murder of DFOडीएफओ संजय सिंहडीएफओ हत्याकांड